उत्तराखंड सहकारी डेयरी फेडरेशन लिमिटेड (यूसीडीएफ) #kanarghee को बढ़ावा दे रही है। यह घी पिथौरागढ़ के कनार गांव में तैयार किया जाता है। कनार का घी देखने में काला होता है, लेकिन यह काफी पौष्टिक माना जाता है।
यूसीडीएफ गांव में समितियों का गठन कर लोगों से घी एकत्रित करती हैं जिसे आंचल कनार घी के नाम से बेचा जाता है। यूसीडीएफ ने अब तक 300 क्विंटल से ज्यादा घी लोगों से खरीदा है। पिथौरागढ़ के बंगापानी तहसील के बरम क्षेत्र का गांव कनार छिपलाकेदार की तलहटी पर बसा है। यह क्षेत्र जैव विविधता और जड़ी-बूटी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है।
यहां के लोग घी का उत्पादन करते हैं, जिसे सेहत के लिए अच्छा माना जाता है। वर्ष 1990 तक यहां का घी अन्य जगहों पर कनस्तरों में भरकर घोड़ों के माध्यम से पहुंचाया जाता था। अब दुग्ध संघ ने कनार के घी को बढ़ावा देने के लिए आंचल कनार घी नाम से इसे बाजार में उतारा है।
पिथौरागढ़ दुग्ध संघ के प्रबंधक प्रह्लाद सिंह ने बताया कि कनार गांव की बद्री गाय उच्च हिमालयी क्षेत्र में घास के साथ जड़ी-बूटी और अन्य औषधियां भी खाती है। इस वजह से यहां का घी काफी पौष्टिक माना जाता है। 100 परिवार प्रतिमाह 100 किलो प्रतिमाह घी का उत्पादन करते हैं।
एक किलो घी का निर्माण करने के लिए करीब 20 लीटर दूध की आवश्यकता होती है। गांव के वातावरण व स्थानीय स्तर पर मिलने पर बिच्छू घास, बिरल्छा, चुनियार, रियास, बांज आदि को पकाकर पशुओं को खिलाने और घी को अधिक देर तक पकाने की वजह से इसका रंग काला होता है। यूसीडीएफ पिछले वर्ष अक्टूबर माह से कनार घी बेच रहा है। घी उपभोक्ताओं को एक हजार रुपये प्रति किलो की दर से बेचा जाता है।